प्रिय Sagar Media Inc, मुंबई के सेंट जॉर्जस अस्पताल के मुर्दाघर में लाशों को सीमेंट की बोरियों की तरह रखा जाता था। मुर्दाघर में ना रोशनी थी और ना ही कोई खिड़की, इसकी छत से पानी टपकता था। 62 साल की रेणु ने मृत्यु के बाद मानव शरीर के इस अपमान के खिलाफ जब आवाज़ उठाई तो वो अकेली थीं। Change.org/hindi पर इस मुद्दे को लेकर रेणु ने जब अपनी पेटीशन शुरू की तो उनके साथ हज़ारों लोग खड़े हो गये। शुरू होने के एक महीने के भीतर ही सरकार और अस्पताल प्रशासन को एक आम आदमी की इस पेटीशन के आगे झुकना पड़ा और जवाब देना पड़ा।
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